मनोरंजन

रहस्यमयी सच्चाई : कहानी (Thriller, Mystery Story)

रहस्यमयी सच्चाई : कहानी – आज से बीस साल पहले की एक शाम। 

हाईवे पर सूरज अपनी कार चला रहा था। उसके साथ उसकी पाँच साल का बेटा, कबीर बैठा था। अचानक उनकी गाड़ी सामने वाली कार से हल्के से टकरा गई। चोट मामूली थी, पर दूसरी कार का मालिक वरुण गुस्से से बिफर उठा।  वरुण कार से बाहर आया। उसका शरीर ताक़तवर था और आँखों में आग थी। कोई भी उसे देखकर डर जाता। सूरज कार से उतरा, हाथ जोड़कर बोला,  

“भाई, जो नुकसान हुआ है, मैं भर दूँगा।”  

लेकिन वरुण ने एक न सुनी और सबके सामने सूरज को मारना शुरू कर दिया। सूरज ने पलटकर हाथ तक नहीं उठाया। वह बस बार-बार कहता रहा,  

“बच्चों के सामने ये सब मत कीजिए।”  

वरुण की पत्नी शीतल और उसके बच्चे ध्रुव व रश्मि यह दृश्य देखते हुए हँस रहे थे। उधर, कबीर अपनी कार की खिड़की से सब कुछ देख रहा था—पिता की मार खाने की बेबसी और अपनी खुद की बेचारगी। उसके दिल में आग धधक रही थी।  

जब वरुण चला गया, तब कबीर ने पूछा,  

“पापा, आपने पलटकर कुछ क्यों नहीं किया?”  सूरज मुस्कुराए, बेटे के सिर पर हाथ रखा और बोले,  “बेटा, उसकी कार में उसके बच्चे बैठे थे। अगर मैं लड़ाई करता तो उनके मन पर बुरा असर पड़ता। कभी-कभी चुप रहना असली ताक़त होती है।”  यह बात कबीर के मन में हमेशा के लिए बस गई, मगर उस दिन की कड़वी याद भी उसके साथ रह गई।


 बीस साल बाद

समय बीता। सूरज अब इस दुनिया में नहीं थे। लेकिन कबीर ने अपने पिता का सपना पूरा किया—वह एक ईमानदार पुलिस अफसर बना। उसकी जिंदगी सही दिशा में चल रही थी। और उसकी ज़िंदगी में रश्मि नाम की लड़की भी थी, जिससे वह प्यार करता था।  

एक दिन कबीर रश्मि के घर गया। वहाँ उसकी माँ शीतल और भाई ध्रुव से मुलाकात हुई। बातचीत के दौरान कबीर ने उसके पिता के बारे में पूछा। शीतल की आँखें भर आईं। उसने कहा,  

“तुम्हारे अंकल वरुण को लापता हुए बीस साल हो गए। पुलिस ने बहुत खोजा, लेकिन कुछ पता नहीं चला।”  

कबीर ने सांत्वना दी और वादा किया कि वह केस दोबारा खोलेगा। अपनी जांच शुरू करने के बाद कबीर को पता चला कि वरुण वही आदमी था जिसने बरसों पहले उसके पिता को पीटा था। लेकिन उसने यह राज अपने दिल में दबाए रखा और रश्मि या उसके परिवार को कुछ नहीं बताया।  

काफी कोशिशों के बाद भी वरुण का कोई सुराग नहीं मिला। निराश होकर एक दिन कबीर फिर रश्मि के घर गया। शीतल ने दुख से पूछा,  

“क्या कुछ पता चला?”  

कबीर ने थके-हारे लहज़े में कहा,  

“नहीं… हो सकता है उन्होंने आत्महत्या कर ली हो, लेकिन पुलिस रिकॉर्ड में ऐसी कोई लाश भी दर्ज नहीं है।”  

इतना कहकर वह वहाँ से निकल गया।  


रहस्यमयी भिखारी  

घर लौटते समय कबीर की नज़र एक बूढ़े भिखारी पर पड़ी। उसकी गर्दन टेढ़ी थी, चेहरा विकृत था और वह लकवे से ग्रस्त लग रहा था। शीतल बोली,  

“ये तो यहीं आसपास घूमने वाला कोई भिखारी है।”  

कबीर आगे बढ़ गया, लेकिन उस भिखारी का चेहरा उसके दिमाग से नहीं निकला। उसे याद आया कि उसने उस आदमी को अक्सर इस घर के आस-पास देखा है। शक गहराया और वह तुरंत उसके पास लौटा।  

भिखारी बोलने में असमर्थ था। कबीर ने पूछा,  “तुम कौन हो?”  

वह भिखारी उसे एक पुरानी झोपड़ी तक ले गया। कबीर ने पहचाना—यह उसके पिता सूरज की झोपड़ी थी। वहाँ भिखारी ने उसे एक पुरानी चिट्ठी पकड़ाई, जिस पर सूरज की लिखावट थी।  

चिट्ठी

कबीर ने पढ़ना शुरू किया:  

“अगर कोई यह चिट्ठी पढ़ रहा है, तो समझो उसने वरुण को ढूंढ लिया है।  

हाँ, यह भिखारी वही है—रश्मि और ध्रुव का पिता, वरुण।  

जिस दिन इसने मुझे सबके सामने पीटा था, उस दिन सबने मुझे कमजोर समझा। लेकिन असल में मैंने अपनी ताक़त बचा ली थी।  

मैंने उस पर नज़र रखनी शुरू की। एक दिन मैंने इसे बेहोश कर अपनी झोपड़ी में ले आया। डॉक्टर होने के कारण मुझे एक ऐसी दवा का पता था, जो धीरे-धीरे इंसान को अंदर से खत्म कर देती है। मैंने वही दवा इसे दी।  

धीरे-धीरे इसका शरीर बदल गया। चेहरा बिगड़ गया, गर्दन टेढ़ी हो गई और बोलने की ताक़त खत्म हो गई। अब यह किसी को पहचान में भी नहीं आता।  

मैं इसे मार सकता था, लेकिन मौत आसान सज़ा होती। मैंने इसे जिंदा छोड़ दिया, ताकि यह हर दिन अपने किए का बोझ ढोए। इसे अपने किए का पछतावा जिंदगी भर सताए। यही मेरा बदला था।”  

कबीर की आँखें भर आईं। उसी समय भिखारी-वरुण भी रो रहा था।  

कबीर ने चिट्ठी शीतल को दी। उसने पढ़ा और फफक कर रोने लगी। दूर खड़ा वरुण यह सब देख रहा था, उसकी आँखों से भी आँसू बह रहे थे।  

The End…


प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *