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विजय देवरकोंडा की ‘किंगडम’: बॉक्स ऑफिस किंग या राजनीतिक मोहरा?

विजय देवरकोंडा की ‘किंगडम’: बॉक्स ऑफिस किंग या राजनीतिक मोहरा? : जब भी कोई फिल्म रिलीज़ होती है, तो उसके बारे में हमेशा चर्चा होती है, लेकिन कुछ फिल्में सिर्फ चर्चा नहीं, बल्कि विवाद भी लाती हैं। विजय देवरकोंडा की हालिया फिल्म ‘किंगडम’, जिसे गौतम तिन्ननुरी ने निर्देशित किया है, एक ऐसी ही फिल्म है। इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर शानदार प्रदर्शन किया है, लेकिन थिएटर के बाहर यह एक गहरे विवाद में घिर गई है। इस लेख में, हम ‘किंगडम’ के इस दोहरे सफर को समझेंगे: एक बॉक्स ऑफिस किंग के रूप में और एक राजनीतिक मोहरे के रूप में।

फिल्म का बॉक्स ऑफिस पर शानदार प्रदर्शन

‘किंगडम’ अपनी रिलीज़ के बाद से ही एक बड़ी व्यावसायिक सफलता साबित हुई है। फिल्म की ओपनिंग बहुत मजबूत रही, पहले ही दिन ₹15 करोड़ से ज़्यादा की कमाई हुई और केवल 3-4 दिनों में यह ₹40 करोड़ का आंकड़ा पार कर गई। इस प्रदर्शन को विजय देवरकोंडा के करियर की एक बड़ी वापसी माना जा रहा है। फिल्म की सफलता के कई प्रमुख कारण हैं:

  • जबरदस्त अभिनय: विजय देवरकोंडा के किरदार को दर्शकों ने खूब सराहा है। उनकी दमदार और प्रभावशाली परफॉर्मेंस को समीक्षकों ने भी काफी पसंद किया है।
  • दमदार एक्शन: फिल्म के एक्शन सीक्वेंस दर्शकों के लिए एक बड़ा आकर्षण हैं, जो फिल्म के मनोरंजन मूल्य को बढ़ाते हैं।
  • अनिरुद्ध का BGM: अनिरुद्ध रविचंदर का बैकग्राउंड स्कोर (BGM) फिल्म का एक और हाईलाइट है, जो सिनेमाई अनुभव को और भी प्रभावशाली बनाता है।

‘किंगडम’ का विवाद: आरोप और विरोध

अपनी व्यावसायिक सफलता के बावजूद, ‘किंगडम’ को कुछ समूहों, खासकर तमिलनाडु में, भारी विरोध का सामना करना पड़ा है। यह विवाद फिल्म की कहानी से जुड़ा है, जो 1920 के दशक में श्रीलंका में शुरू होती है और 70 साल तक चलती है। कहानी एक पुलिस कांस्टेबल के इर्द-गिर्द घूमती है जो अपने भाई की तलाश में श्रीलंका के जाफना पहुँचता है।

तमिलनाडु में कुछ राजनीतिक दलों और सामुदायिक संगठनों ने फिल्म में श्रीलंकाई तमिलों और उनके ऐतिहासिक नेताओं के चित्रण पर कड़ी आपत्ति जताई है। उनका आरोप है कि फिल्म इस समुदाय को नकारात्मक रूप में दिखाती है और उन्हें आतंकवादी के रूप में चित्रित करती है, जो बेहद आपत्तिजनक है। इन समूहों ने विरोध प्रदर्शन भी किए हैं और फिल्म पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है।

यह पहली बार नहीं है जब किसी फिल्म पर श्रीलंकाई तमिलों को गलत तरीके से पेश करने का आरोप लगा है। अतीत में भी कई फिल्मों को ऐसे ही विरोध का सामना करना पड़ा है।

दर्शक बनाम राजनीतिक विरोध: किसकी जीत हुई?

‘किंगडम’ की कहानी का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि दर्शक और राजनीतिक विरोध के बीच एक स्पष्ट अंतर देखने को मिला। जहाँ एक तरफ थिएटर के बाहर विरोध प्रदर्शन हो रहे थे, वहीं दूसरी तरफ दर्शक बड़ी संख्या में फिल्म देखने पहुँच रहे थे। यह बताता है कि कई दर्शकों के लिए फिल्म का मनोरंजन मूल्य, कहानी और प्रदर्शन राजनीतिक विवाद से ज्यादा महत्वपूर्ण थे।

यह प्रवृत्ति दर्शकों और सिनेमा के बीच बदलते रिश्ते पर एक महत्वपूर्ण सवाल खड़ा करती है। क्या आज के दर्शक किसी फिल्म से जुड़े राजनीतिक या सामाजिक विवादों से ज्यादा उसकी गुणवत्ता और कहानी को प्राथमिकता देते हैं? ‘किंगडम’ के मामले में, दर्शकों का फैसला साफ है: उन्होंने फिल्म की सिनेमाई खूबियों का समर्थन किया, यह साबित करते हुए कि एक अच्छी फिल्म अक्सर राजनीतिक बहसों से ऊपर उठ सकती है।

हम इस विषय पर आपके विचार जानना चाहेंगे। ‘किंगडम’ की सफलता के पीछे क्या मुख्य कारण है, जबकि यह विवादों में घिरी हुई है? क्या यह घटना दर्शकों की बदलती मानसिकता को दर्शाती है?

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